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लेखनी कहानी -09-Mar-2023- पौराणिक कहानिया

'आप जाइए, मैं देख लूँगा। आपका यहाँ रहना उचित नहीं।'

 

'तुम अकेले हो जाओगे!'

 

'कोई चिंता नहीं।'

 

'तुम भी मेरे साथ क्यों नहीं चलते? अब हम यहाँ रहकर क्या कर लेंगे, हम अपनेर् कत्ताव्य का पालन कर चुके।'

 

'आप जाइए। आपको जो संकट है, वह मुझे नहीं। मुझे अपने किसी आत्मीय के मान-अपमान का कम भय नहीं।'

 

विनय वहीं अशांत और निश्चल खड़े रहे, या यों कहो कि गड़े रहे, मानो कोई स्त्री घर से निकाल दी गई हो। इंद्रदत्ता उन्हें वहीं छोड़कर आगे बढ़े, तो जन-समूह उसी गली के मोड़ पर रुका हुआ था, जो सूरदास के झोंपड़े की ओर जाती थी। गली के द्वार पर पाँच सिपाही सँगीनें चढ़ाए खड़े थे। एक कदम आगे बढ़ना संगीन की नोक को छाती पर लेना था। संगीनों की दीवार सामने खड़ी थी।

 

इंद्रदत्ता ने एक कुएँ की जगत पर खड़े होकर उच्च स्वर से कहा-भाइयो, सोच लो, तुम लोग क्या चाहते हो? क्या इस झोंपड़ी के लिए पुलिस से लड़ोगे? अपना और अपने भाइयों का रक्त बहाओगे? इन दामों यह झोंपड़ी बहुत महँगी है। अगर उसे बचाना चाहते हो, तो इन आदमियों ही से विनय करो, जो इस वक्त वरदी पहने, संगीनें चढ़ाए यमदूत हुए तुम्हारे सामने खड़े हैं। और यद्यपि प्रकट रूप से वे तुम्हारे शत्राु हैं, पर उनमें एक भी ऐसा होगा, जिसका हृदय तुम्हारे साथ हो, जो एक असहाय, दुर्बल, अंधो की झोंपड़ी गिराने में अपनी दिलचस्पी समझता हो। इनमें सभी भले आदमी हैं, जिनके बाल-बच्चे हैं, जो थोड़े वेतन पर तुम्हारे जान-माल की रक्षा करने के लिए घर से आए हैं।

 

एक आदमी-हमारे जान-माल की रक्षा करते हैं, या सरकार के रोब-दाब की?

 

इंद्रदत्ता-एक ही बात है। तुम्हारे जान-माल की रक्षा के लिए सरकार के रोब-दाब की रक्षा करनी परमावश्यक है। इन्हें जो वेतन मिलता है,वह एक मजूर से भी कम हैण्ण्ण्।

 

एक प्रश्न-बग्घी-इक्केवालों से पैसे नहीं लेते?

 

दूसरा प्रश्न-चोरियाँ नहीं कराते? जुआ नहीं खेलाते? घूस नहीं खाते?

 

इंद्रदत्ता-यह सब इसलिए होता है कि वेतन जितना मिलना चाहिए, उतना नहीं मिलता। ये भी हमारी और तुम्हारी भाँति मनुष्य हैं, इनमें भी दया और विवेक है, ये भी दुर्बलों पर हाथ उठाना नीचता समझते हैं। जो कुछ करते हैं, मजबूर होकर। इन्हीं से कहो, अंधो पर तरस खाएँ,उसकी झोंपड़ी बचाएँ। (सिपाहियों से) क्यों मित्रो, तुमसे इस दया की आशा रखें? इन मनुष्यों पर क्या करोगे?

 

इंद्रदत्ता ने एक ओर जनता के मन में सिपाहियों के प्रति सहानुभूति उत्पन्न करने की चेष्टा की और दूसरी ओर सिपाहियों की मनोगत दया को जागृत करने की। हवलदार संगीनों के पीछे खड़ा था। बोला-हमारी रोजी बचाकर और जो चाहे कीजिए। इधार से जाइए।

 

इंद्रदत्ता-तो रोजी के लिए इतने प्राणियों का सर्वनाश कर दोगे? ये बेचारे भी तो एक दीन की रक्षा करने आए हैं। जो ईश्वर यहाँ तुम्हारा पालन करता है, वह क्या किसी दूसरी जगह तुम्हें भूखों मारेगा? अरे! यह कौन पत्थर फेंकता है? याद रखो, तुम लोग न्याय की रक्षा करने आए हो, बलवा करने नहीं। ऐसे नीच आघातों से अपने को कलंकित करो। मत हाथ उठाओ, अगर तुम्हारे ऊपर गोलियों की बाढ़ भी चले...

 

इंद्रदत्ता को कुछ कहने का अवसर मिला। सुपरिंटेंडेंट ने गली के मोड़ पर आदमियों का जमाव देखा, तो घोड़ा दौड़ाता उधार चला। इंद्रदत्ता की आवाज कानों में पड़ी, तो डाँटकर बोला-हटा दो इसको। इन सब आदमियों को अभी सामने से हटा दो। तुम सब आदमी अभी हट जाओ,नहीं हम गोली मार देगा।

 

समूह जौ-भर भी हटा।

 

'अभी हट जाओ, नहीं हम फायर कर देगा।'

 

कोई आदमी अपनी जगह से हिला।

 

सुपरिंटेंडेंट ने तीसरी बार आदमियों को हट जाने की आज्ञा दी।

 

समूह शांत, गंभीर, स्थिर रहा।

 

फायर करने की आज्ञा हुई, सिपाहियों ने बंदूकें हाथ में लीं। इतने में राजा साहब बदहवास आकर बोले-... लेकिन हुक्म हो चुका था। बाढ़ चली, बंदूकों के मुँह से धुँआ निकला, धाँय-धाँय की रोमांचकारी धवनि निकली और कई चक्कर खाकर गिर पड़े। समूह की ओर से पत्थरों की बौछार होने लगी। दो-चार टहनियाँ गिर पड़ी थीं, किं तु वृक्ष अभी तक खड़ा था।

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